—अन्तर—-
माँ !
तुम बांध क्योँ नहीं लेती
सत्तू
छाछ
जौ और कुकडी*के
पकवानों की यादों की पोटली
मैं आज गांव छोड़कर
शहर जा रहा हूँ
वह सब देखने
जो मैंने
यहां नहीं देखा
वह सब करने
जो मैंने
यहां नहीं किया
और
वह सब पाने और भोगने
जो यहां नहीं पाया और भोगा
या इससे भी बढकर
शायद अपनी अस्मिता की तलाश में
क्योंकि
आज
मेरी इच्छाएं और विवशताएं
एक होकर
मुझे
यहां से
दूर ले जाना चाहतीं हैं
और
अब तुमसे
बगावत करने के अतिरिक्त
मुझे कोई दूसरा रास्ता
दिखाई ही नहीं देता
यह जानते हुए भी कि
मुझे एक न एक दिन
वापस गांव तो
लोटना ही होगा
लेकिन तब तुम नहीं होगी
और मेरे लिए
गांव या शहर में
तब
केवल थोड़ा सा ही
अन्तर रह जाएगा
शब्दों का
‘गांव’
और
‘शहर’
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१.कुकडी*- अर्थ-मक्की !
(प्रस्तुत कविता, मेरे काव्य-संग्रह-“जमीन से जुड़े आदमी का दर्द से उद्धृत की गयी है-अश्विनी रमेश )
ATI SUNAR KRITI
DEEPAK
By: DEEPAK SHARMA KULUVI on May 23, 2011
at 4:58 am
Thank you Deepak jee,
You seem to be very dedicated for cause of Himachali people,but there are very few who understand the value of good literature.
By: ashwiniramesh on May 23, 2011
at 1:35 pm